Subscribe to the annual subscription plan of 2999 INR to get unlimited access of archived magazines and articles, people and film profiles, exclusive memoirs and memorabilia.
Continue"जिसकी लाठी उसकी भैंस" कहावत संसार की सृष्टि से ही प्रत्येक युग में, प्रत्येक देश में तथा प्रत्येक समाज और जाति में चरितार्थ होती चली आ रही है। साथ ही अन्याय और अत्याचार की विरोधी प्रवृत्तियां भी मानव-प्रकृति में जन्म लेती रही है। पौराणिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक युग में जब जब अन्याय और अनाचार अपनी सीमा लांधने लगे है तब तब स्वभावतः "दूध का दूध और पानी का पानी" करनेवाले व्यक्तियों का भी प्रादुर्भाव होता रहा है। उन वीर व्यक्तियों में केवल पुरुषों की ही नहीं, बल्कि नारियों की भी संख्या अधक से अधिक रही है। उन्हीं वीरांगनाओं में से "पन्ना" भी है जो अपने बहादुर और ईमानदार पिता की आनबान रखने के लिये अपनी जान पर खेल जाना भी एक साधारण खेल समझती है।
धन, पद और राज्य को लोभ प्रायः मनुष्य को अन्धा बना देता है। ऐसे ही लोभी अंधों में से एक मंगल सिंह है, जो सत्यवादी, धर्मनिष्ठ क्षौर प्रजापालक महाराज रणधीर सिंह जी की राजगद्दी पर अधिकार जमाने के लिये, समय पाकर उन्हें गुप्त स्थान में छुपा देता है और उनकी मृत्यु का झूठा समाचार फैलाकर प्रजा पर अपने प्रभुत्व का प्रभाव डालने का पूरा प्रयत्न करता है। कुछ समय के लिये उसका प्रभाव यहां तक पड़ता है कि महाराज रणधीर सिंह जी के विशेष विश्वासपात्र और हमदर्द आदमी मानसिंह भी अपने मालिक का विरोधी और विद्रोही बन जाता है। किन्तु अपने अन्नदाता के नमक का प्रभाव एक ही अनुष्य पर से नहीं हटता है और जो मृत्यु तक राजा रणधीर सिंह जी के कल्याण की कामना करता है, वह नमक हलाल वीर राजपूत है कीर्ति सिंह। कीर्ति सिंह, राज्य की रक्षा के लिये डट कर शत्रुओं का सामना करते हुए राजपूत की मौत संसार से चल बसता है।
'शेर की संतान शेर ही होती है' के अनुसार कीर्ति सिंह की बेटी पन्ना की नसनस में अपने बहादुर बाप का ख़ुन खौल उठता है। वह महाराज रणधीर सिंह जी के साथ किये गये अत्याचारों के ब्रह्माओं की जड़ मिटा देने पर तुल जाती है और राजा मंगल सिंह के द्वारा रचे गये प्रपंचों का जाल फाड़ कर राजा रणधीर सिंह जी को उनकी राजगद्दी वापस दिलाने की प्रतिज्ञा करके मैदान में उतर पड़ती है। इसी दौरान में मुखिया मानसिंह के बेटे विजय से उसका सामना होता है। वही पन्ना जो कुछ ही दिनों में विजय की पत्नी बननेवाली थी, आज विजय के सामने दुश्मन के रूप में आती है। वही पन्ना जो मानसिंह के परिवार की कृलवधू बनकर उनका संसार बसानेवाली थी, आज ज्वाला बनकर परिवार को भस्म कर देने पर उतारू हो जाती है। न्याय अन्याय, सत्य असत्य तथा शक्ति और अधिकार का घोर युद्ध छीड़ जाता है। इस युद्ध में पन्ना राजद्रोहिणी करार दी जाती है। साथ ही नारी और पुरूष के बाहुबल की मापतौल का एक अच्छा और उचित अवसर भी संसार को मिल जाता है।
अन्त में इस स्वतंत्रता के संग्राम में वीरांगना पन्ना की विजय होती है। मुखिया मानसिंह का हृदय सच्चाई का साथ फिर से देता है। मंगल सिंह के फरेबों का भाण्डा सारी प्रजा के सामने फूटता है और प्रजा अपने असली महाराज रणधीर सिंह जी के लिये आवाज बुलन्द करती है। विजय पन्ना का साथी बनकर दुश्मनों का सामना करता है। रणधीर सिंह जी को उनकी राजगद्दी वापस मिलती है और मंगल सिंह मारा जाता है। यह संघर्ष आनन्द में बदल जाता है और पन्ना के साथ विजय का विवाह हो जाता है।
(From the official press booklet)